Friday, July 17, 2009

आत्मबोध - आशा बर्मन




जीवन की राहों में बहुत-कुछ
मुझे अनजाने, अनचाहे,
अनायास ही मिल गया।

पर उस मिलने के महत्व को
मैनें समझा ही कहां ?

और समझती भी कैसे?
क्यॊंकि उस ओर मेरा
ध्यान ही कहां था?

मेरा सारा ध्यान तो

उसी ओर केन्द्रित रहा,
जो मैंने बार-बार चाहा
पर मुझे न मिल सका।


पूरी आत्मशक्ति लगाकर
मैंने अपना सारा ध्यान
उसी ओर रखा, जो अभीतक
मुझे नहीं मिल सका था ।

उसी को लेकर स्वयं को

दीन-हीन और दुखी समझा,
तब अपनी उपलब्धियों को
देखने का अवकाश कहां था?

दीनता-हीनता का वह

निराधार भ्रमजाल टूटा,
तो सत्य की किरणों का
प्रकाश सा फ़ूटा ।

सहसा मैं विमूढ सी,
कृतज्ञता से भरी उसके प्रति
जिसकी कृपा से मुझे
वह सब था मिला,
जिसके मिलने का बोध
अबतक मुझे नहीं था।

अब तो मन था शान्त,
उसमें कोई रोष न था ।

4 comments:

  1. बहुत अच्छा लिखा है आपने ।

    मैने अपने ब्लाग पर एक लेख लिखा है-इन देशभक्त महिलाओं के जज्बे को सलाम- समय हो तो पढें और कमेंट भी दें-

    http://www.ashokvichar.blogspot.com

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  2. bahut kuchh aisaa hai aapke lekhan me jopaathak k dil-o-dimaag par asarkaari hai............
    aapki balihaari hai
    badhaai !

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  3. अच्छा लगा पढ़कर.

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  4. यही होता है जीवन में। सत्यवचन।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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