विरासत
कई वर्ष पहले एकबार, जब मै गयी थी हिन्दुस्तान ,
भविष्य के गर्भ में था क्या, कौन सकता इसे जान ?
वज्रपात हुआ जाते ही, पूज्य पिता को खोया था ,
जिनसे बतियाने का मैंने सपना मधुर संजोया था |
बोली,”कविताप्रेमी हो
तुम, तुम्हीं सम्हालो उनकी थाती”|
कागज़ के पीले पन्नों की, बाबूजी से मिली विरासत,
वे फटे-पुराने पन्ने ही, बने मेरी अनमोल अमानत |
कुछ बातें उनमें सुख-दुःख की,कुछ अतीत का था गौरव|
उनमें है उनकी सुन्दर,सुगढ़ हस्तलिपि का अविकल अंकन,
हिंदी,उर्दू,संस्कृत की, उनकी प्रिय कविताओं का संकलन |
मानस का उल्लास कहीं और कहीं अंतर्व्यथायें थीं |
इस संकलन में पाया मैंने नवरस का अद्भुत संचार,
कहीं वीर,वात्सल्य कहीं और कहीं रसराज श्रृंगार |
ये कवितायें संगीतमयी हो,मन में भर देतीं झंकार.
मेरा बचपन मेरे ही सम्मुख हो जाता है साकार |
इन पन्नों का स्पर्श
जैसे स्नेहिल स्पर्श तुम्हारा ही |
पढ़ उनको लगता है मुझको, मन से सामीप्य तुम्हारा ही |
मंद-मंद मुस्काते से, मनस्थल पर छाते से,
निज धीर-गंभीर से स्वर में,उन रचनाओं को गाते से |
जिनका भावार्थ कभी मुझको तुमने ही तो समझाया था,
उनमें प्रयुक्त अलंकार-छंद रस आदि मुझे बतलाया था|
सुदूर अतीत की वे बातें, अब लगता है सब सपना सा,
अब हुआ पहुंच से दूर बहुत,तब लगता कितना अपना सा|
जब भी कवितायें पढ़ती हूँ, मित्रों में बैठ सुनाती हूँ,
मन हो जाता है भावसिक्त,जाने कहां खो जाती हूँ |
कैसी अद्भुत विरासत है, कैसी मूल्यवान यह संपदा,
ऐसी सम्पति लोगों को जीवन में मिलती यदा-कदा |
-आशा
बर्मन