Monday, October 26, 2009

प्यार का प्रतिदान - आशा बर्मन


प्यार का प्रतिदान

चाहकर भी कर न पायी, प्यार का प्रतिदान मैं ।

प्यार भी ऐसा मिला, आकंठ मैं डूबी रही,
मिल गया मुझको सभीकुछ, चाह ना कोई रही।
भाग्य पर निज आजतक विश्वास आता है नहीं
कब व कैसे बन गयी हूँ, प्यार का प्रतिमान मैं॥
चाहकर भी कर न पायी, प्यार का प्रतिदान मैं ।

रंचभर का कष्ट तुमको, बन गय़ी उर की व्यथा.
हो गये यदि रुष्ट तुम, जीवन मेरा होता वृथा ।
प्रिय रहो प्रसन्न प्रतिपल,है कहाँ वह राह ऐसी?
भ्रान्तपथिक सी भटकती, उसी के सन्धान में ॥
चाहकर भी कर न पायी, प्यार का प्रतिदान मैं ।

मकरन्द और पराग पवन में कहीं घुलते रहे,
सहज सतरंगी मेरे सपने वहीं पलते रहे ।
क्षितिज के उस छोर तक, प्यार से विस्तार ले,
मौन होकर देखती हूँ, प्रेमजनित वितान मैं ॥
चाहकर भी कर न पायी, प्यार का प्रतिदान मैं ।

खोने लगा निजस्व ,तुम ही तुम रहे इस सृष्टि में,
सर्वस्व निखरने लगा, प्रेम की इस वृष्टि में ।
कृतज्ञता का भाव ही मन में रहा अब शेष था,
संसार का, व्यवहार का, भूल रही ज्ञान मैं॥
चाहकर भी कर न पायी, प्यार का प्रतिदान मैं ।

भक्ति है इतनी प्रबल,पर शक्ति है और है न साधन,
किसविधि से पूजूं तुमको, कैसे करूँ मैं अराधन?
शक्ति दो मुझमें हे भगवन, भाव हों साकार मेरे,
राह भी ,गन्तव्य भी, इससे नहीं अनजान मैं ॥
चाहकर भी कर न पायी, प्यार का प्रतिदान मैं ।

Friday, October 23, 2009

कविता- आशा बर्मन


कविता


किसी ने कहा, कविता मन का विलास है,
कविता मेरे लिये प्राणों की प्यास है ।
प्यास है साथ ही तृप्ति का साधन भी,
कविता आराध्य है, साथ ही आराधन भी।

विलास की वस्तु यह पहले हुआ करती थी,
अलंकारों से युक्त हो,राजाओं के मन हरती थी।
कविता हमारे लिये विलास का न साधन है,
न ही हमारे लिये जीविका उपार्जन है ॥

युग-युग में कविता के रूप अनेक रहे,
अन्तरात्मा जिस ओर गयी,कवि उस ओर बहे।
कभी वीर, कभी भक्ति, कभी श्रृंगारप्रधान रही,
कविता कभी वादों के विवाद में उलझती रही ॥

कविता तुलसी की अनन्य दैन्य भक्ति है,
कविता सूर की प्रेमजन्य शक्ति है ।
मीरा के आंसू, कबीर की वह बानी है,
कविता की शक्ति अब जानी-पहचानी है ।।

हम प्रवासी कवि सबसे ही निराले हैं,
व्यवहारिकता में नितान्त भोले-भाले हैं॥
राजनीति के दाँवपेच हमें न आते हैं,
करतलध्वनिमात्र से हर्षित हो जाते हैं॥

कविता हमारे लिये भावमय विचार है,
इसके माध्यम से होता आत्मविस्तार है।
यंत्रचालित जीवन से उबरने का उपाय है,
कविता हमारे लिये स्वान्तःसुखाय है ॥