Saturday, August 29, 2009

प्रश्न - आशा बर्मन




यह प्रश्नचिन्ह क्यों बार-बार ?
क्यों उसे जीत, क्यों मुझे हार?
यह प्रश्न उठे क्यों बार-बार ?

जीवन में जो भी किये कर्म,
तत्समय लगा था, वही धर्म ।
यदि अनजाने ही हुई भूल,
लगता जीवन से गया सार ॥
यह प्रश्न उठे क्यों बार-बार?

इच्छाओं का तो नहीं अन्त,
मन छू लेता है दिग-दिगन्त।
इस मन को ही यदि कर लूं जय,
हो जाये कष्टों से निस्तार ॥
यह प्रश्न उठे क्यों बार-बार?

क्यों मुझको बनना है विशिष्ट?
क्यों नहीं काम्य है सहज शिष्ट?
सब सौंप उसीको कठिन भार,
निश्चिन्त रहूं, पा सुख अपार।
यह प्रश्न उठे क्यॊं बार-बार?

Tuesday, August 18, 2009

फुरसत - आशा बर्मन

आओ आज इस नये दिवस में एक नयी शुरूआत करें।
फुरसत से बैठे हैं हम, यूँ ही सबसे बाते करें॥

अपने नन्हें से बेटे से खेल-वेल कुछ हो जाये।
प्यारी बिटिया की कोई अभिलाषा पूरी हो जाये॥

अपने ही परिवार पर, खुशियों की बरसात करें।
फुरसत से बैठे हैं हम, यूँ ही सबसे बाते करें॥

अम्माजी के पास गये, बीत चलें हैं कुछ दिन।
पल-पल छिन-छिन नैन बिछाये बैठी रहती हैं हर दिन॥

उनके मुख पर मुस्कान सजे, कुछ ऐसी करामात करें।
फुरसत से बैठे हैं हम, यूँ ही सबसे बाते करें॥

मेरे मन की गहराई से कोई धीरे से बोला।
मन के सोये भावों को,मैंने कबसे नहीं टटोला॥

आज समय ह, क्यूँ न स्वयं से मुलाकात करें।
फुरसत से बैठे हैं हम, यूँ ही सबसे बाते करें॥

इस बसन्ती मौसम में, चिड़ियों की है मधुर चहक।
वातावरण में व्याप रही है फूलों की मीठी महक॥

इस प्राकृतिक शोभा को उर में आत्मसात करें।
फुरसत से बैठे हैं हम, यूँ ही सबसे बाते करें॥

तुम्हारा प्यार - आशा बर्मन


गगन सा निस्सीम,

धरा सा विस्तीर्ण.

अनल सा दाहक,

अनिल सा वाहक,

सागर सा विस्तार,

तुम्हारा प्यार!


विश्व में देश,

देश में नगर.

नगर का कोई परिवेश,

उसमें, मैं अकिंचन!


अपनी लघुता से विश्वस्त,

तुम्हारी महत्ता से आश्वस्त,

निज सीमाओं में आबद्ध

मैं हूँ प्रसन्नवदन!


परस्पर हम प्रतिश्रुत,

पल - पल बढ़ता प्यार,

शब्दों पर नहीं आश्रित,

भावों को भावों से राह!


तुम्हारी महिमा का आभास,

पाकर मैंने अनायास,

दिया सौंप सारा अपनापन

चिन्तारहित मेरा मन!

Wednesday, August 12, 2009

अपराधबोध - आशा बर्मन


अपनी पावन धरती को तज,
क्यों दूर देश में आये हम ?
जियें दोहरा जीवन कबतक ?
यह भी समझ न पाये हम ॥

जिन जीवनमूल्यों में जीते थे,
उनको फ़िर से रहे आंक।
क्या त्यागें. हम क्या अपनायें?
हम विमूढ़ से रहे ताक ॥

स्वदेश लौट्ने की योजना
सदैव स्थगित करते गये।
साथ ही एक अपराधबोध
मन में विकट भरते रहे॥


ऊपर से सम्पन्न सही,
अन्तर से निपट निर्धन।
हम इतने क्यों निरुपाय?
अपने प्रति यह है अन्याय॥


जब सारी सृष्टि का वह निर्माता,
हर देश का उससे ही नाता।
तो यह कैसा है विरोध?
कैसा यह अपराधबोध?


हम समझें निज को भाग्यवन्त,
दो संस्कृतियों को हमने जाना,
उनके गुण-अवगुण को
निकट से हमने पहचाना॥


हम भारत माता के कृतज्ञ,
जिसने हमें जन्म दिया।
इस विदेशभूमि ने भी
भरण-पोषण व शरण दिया॥


भारत ने सदा से ही
पोषक को सम्मान दिया ।
देवकीनंदन कृष्ण यशोदा का
बेटा भी कहलाया ॥


उभय संस्कृतियों के सौरभ से
नित निज जीवन को महकायें ।
अपराधभाव को त्याग,
मन में आत्मविश्वास जगायें॥

Monday, August 10, 2009

अभिनय- आशा बर्मन






हम अभिनय करते हैं।


लेकर चरित्र हम जीवन से
उसे सजाकर अभिनय से
निज परिश्रम से उनमें
रंग जीवन के भरते हैं।
हम अभिनय करते हैं॥


नाट्यरस में डूब-डूब कर,
निज स्वरूप को भूल-भूल कर,
अभिनीत चरित्रों में रमकर
सपनों में विचरते हैं ।
हम अभिनय करते हैं॥


कंठ्स्थ करें संवादों को,
जीवन्त करें उन भावों को,
सब पात्रों से रख तालमेल,
अभ्यास सतत हम करते हैं।
हम अभिनय करते हैं ॥



साधना कठिन थी अनिवार्य,
बाधायें सारी कीं शिरोधार्य ।
सबसे सहयोग किया सबने,
स्वान्तःसुखाय सब किया कार्य॥

दर्शक हो चाहे निर्देशक,
सबके कटाक्ष हम सहते हैं।
हम अभिनय करते हैं ॥


यह रंगमंच है जीवन का,
हम आप सभी हैं अभिनेता,
निर्देशक है वह परमपिता,
जिसके सशक्त संकेतों पर,
हम सभी थिरकते रहते हैं।
हम अभिनय करते हैं ॥


अधिकार- आशा बर्मन

जब हम छोटे थे, कर्तव्यों से
जीवन की हुई शुरुवात ।
पासा पलट गया है,
अधिकारों की हो रही बात॥

छोटे-बड़े, नर-नारि सभी
हर ओर से कर रहे शोर।
सभी अपने-अपने स्वर में
मांग रहे अधिकार और॥

और अधिक पाने के मद में
कर्तव्यों को हम गये भूल।
आधिकारों का उपयोग हो तभी,
जब कर्तव्यों का हो समुचित योग॥

मिला हमें अधिकार, स्वतन्त्र
देश के नागरिक बनने का ।
मतदान के द्वारा अपना
नेता स्वयं चुनने का ॥

तो क्या सभी मतदाता
सोच-समझकर मत देते?
प्रजातन्त्र को लज्जित कर
मत क्रय-विक्रय नहीं होते?

आतंकवादियों ने फ़ैलाया
देश-देश जो अनाचार। ।
वे भी खोज रहे निरन्तर
अपने धर्म का अधिकार॥

मां को महिमामयी बनाता
उसके मातृत्व का अधिकार।
मां बनने के साथ मिली
कर्तव्यों की सजी हुई कतार ॥

न मेरा किसी से विरोध,
एक ही है सविनय अनुरोध।
करो मुझपर एक उपकार,
और न दो मुझको अधिकार ॥