Saturday, August 29, 2009

प्रश्न - आशा बर्मन




यह प्रश्नचिन्ह क्यों बार-बार ?
क्यों उसे जीत, क्यों मुझे हार?
यह प्रश्न उठे क्यों बार-बार ?

जीवन में जो भी किये कर्म,
तत्समय लगा था, वही धर्म ।
यदि अनजाने ही हुई भूल,
लगता जीवन से गया सार ॥
यह प्रश्न उठे क्यों बार-बार?

इच्छाओं का तो नहीं अन्त,
मन छू लेता है दिग-दिगन्त।
इस मन को ही यदि कर लूं जय,
हो जाये कष्टों से निस्तार ॥
यह प्रश्न उठे क्यों बार-बार?

क्यों मुझको बनना है विशिष्ट?
क्यों नहीं काम्य है सहज शिष्ट?
सब सौंप उसीको कठिन भार,
निश्चिन्त रहूं, पा सुख अपार।
यह प्रश्न उठे क्यॊं बार-बार?

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