Monday, August 10, 2009

अधिकार- आशा बर्मन

जब हम छोटे थे, कर्तव्यों से
जीवन की हुई शुरुवात ।
पासा पलट गया है,
अधिकारों की हो रही बात॥

छोटे-बड़े, नर-नारि सभी
हर ओर से कर रहे शोर।
सभी अपने-अपने स्वर में
मांग रहे अधिकार और॥

और अधिक पाने के मद में
कर्तव्यों को हम गये भूल।
आधिकारों का उपयोग हो तभी,
जब कर्तव्यों का हो समुचित योग॥

मिला हमें अधिकार, स्वतन्त्र
देश के नागरिक बनने का ।
मतदान के द्वारा अपना
नेता स्वयं चुनने का ॥

तो क्या सभी मतदाता
सोच-समझकर मत देते?
प्रजातन्त्र को लज्जित कर
मत क्रय-विक्रय नहीं होते?

आतंकवादियों ने फ़ैलाया
देश-देश जो अनाचार। ।
वे भी खोज रहे निरन्तर
अपने धर्म का अधिकार॥

मां को महिमामयी बनाता
उसके मातृत्व का अधिकार।
मां बनने के साथ मिली
कर्तव्यों की सजी हुई कतार ॥

न मेरा किसी से विरोध,
एक ही है सविनय अनुरोध।
करो मुझपर एक उपकार,
और न दो मुझको अधिकार ॥

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