Saturday, September 26, 2009

दीवाली- आशा बर्मन



दीवाली आयी, जगमग दीप जलाओ ।

भारत से दूर प्रवासी हैं हम,
विदेश भूमि के वासी हैं हम,
दीवाली के अवसर पर
शुभकामनायें बरसाओ ।

दीवाली आयी, जगमग दीप जलाओ ।
लक्ष्मीपूजन हो घर-घर में,
आरती हो मंगलमय स्वर में,
निज भावों के दीपदान पर,
स्नेह-प्रदीप जलाओ ।
दीवाली आयी, जगमग दीप जलाओ ।

हम न भूलें संस्कृति अपनी,
संस्कार और सदवृति अपनी,
असत पर हो सत की विजय,
मन्त्र यही दोहराओ ।
दीवाली आयी, जगमग दीप जलाओ ।

गांधी जयन्ती के अवसर पर - आशा बर्मन



बापू : एक उद्‍गार आशा बर्मन


हे गत शताब्दी के युग पुरुष, बापू!

मुझे यह सौभाग्य तो नहीं मिला
कि में तुम्हारे दर्शन कर सकूँ,
पर यह सौभाग्य तो मिला ही कि
में उसी देश में, उसी युग में जन्मी
जहाँ तुम्हारा जन्म हुआ था।

देखने का सौभाग्य तो नहीं,
पर सुनने का सौभाग्य तो मिला ही।
कई सभाओं में तुम्हारी प्रशस्तियाँ सुनी,
कई पत्रिकाओं व ग्रन्थों में
तुम्हारी गाथायें व संस्मरण पढ़े,
और हर बार पहले से भी
कुछ अधिक नतमस्तक हो गयी।

इतने वर्षों के पश्चात मन में
बार-बार आती है एक ही बात
कि मानव जाति ने जितना प्रयास
तुम्हारे गुणगान में लगाया है,
उसका शतांश प्रयास भी ,
यदि तुम्हारे किसी एक गुण,
त्याग, सत्य, अहिंसा को
अपनाने में लगा पाते,

तो न केवल यह तुम्हारे प्रति

एक सच्ची श्रद्धांजलि होती
वरन्‌ इस विश्व का रूप ही

कुछ दूसरा ही होता,
विश्व के लोग कुछ भिन्न होते।

बस, मुझे और कुछ नहीं कहना है।
इसके पश्चात कहने सुनने को क्या शेष रह जाता है?