Tuesday, June 11, 2013


   विरासत

 
कई वर्ष पहले एकबार, जब मै गयी थी हिन्दुस्तान ,

भविष्य के गर्भ में था क्या, कौन सकता इसे जान ?

 
वज्रपात हुआ जाते ही, पूज्य पिता को खोया था ,

जिनसे बतियाने का मैंने सपना मधुर संजोया था |

 
पा अवसर बहन ने मेरी, थमायी थी मुझे इक कापी,

बोली,कविताप्रेमी हो तुम, तुम्हीं सम्हालो उनकी थाती|

 
कागज़ के पीले पन्नों की, बाबूजी से मिली विरासत,

वे फटे-पुराने पन्ने ही, बने मेरी अनमोल अमानत |

 
उन पीले पड़े पृष्ठों में, भीगी स्मृतियों का था सौरभ,

कुछ बातें उनमें सुख-दुःख की,कुछ अतीत का था गौरव|

 
उनमें है उनकी सुन्दर,सुगढ़ हस्तलिपि का अविकल अंकन,

हिंदी,उर्दू,संस्कृत की, उनकी प्रिय कविताओं का संकलन |


 यत्र-तत्र उनमें उनकी अपनी भी रचनायें थीं,

मानस का उल्लास कहीं और कहीं अंतर्व्यथायें थीं |

 
इस संकलन में पाया मैंने नवरस का अद्भुत संचार,

कहीं वीर,वात्सल्य कहीं और कहीं रसराज श्रृंगार |

 
ये कवितायें संगीतमयी हो,मन में भर देतीं झंकार.

मेरा बचपन मेरे ही सम्मुख हो जाता है साकार |

 
इन पन्नों का स्पर्श  जैसे स्नेहिल स्पर्श तुम्हारा ही |

पढ़ उनको लगता है मुझको, मन से सामीप्य तुम्हारा ही |

 
मंद-मंद मुस्काते से, मनस्थल पर छाते से,

निज धीर-गंभीर से स्वर में,उन रचनाओं को गाते से |

 
जिनका भावार्थ कभी मुझको तुमने ही तो समझाया था,

उनमें प्रयुक्त अलंकार-छंद रस आदि मुझे बतलाया था|

 
सुदूर अतीत की वे बातें, अब लगता है सब सपना सा,

अब हुआ पहुंच से दूर बहुत,तब लगता कितना अपना सा|

 
जब भी कवितायें पढ़ती हूँ, मित्रों में बैठ सुनाती हूँ,

मन हो जाता है भावसिक्त,जाने कहां खो जाती हूँ |

 
कैसी अद्भुत विरासत है, कैसी मूल्यवान यह संपदा,

ऐसी सम्पति लोगों को जीवन में मिलती यदा-कदा |

 
                          -आशा बर्मन