Wednesday, July 8, 2009

माँ

मां



माँ बनकर ही मैंने जाना,
क्या होता है माँ का प्यार।
जिस माँ ने अनजाने ही,
दे दिया मुझे सारा संसार।।


गरमी से कुम्हलाये मुख
पर भी जो जाती थी वार।
शीत भरी ठंडी रातों में,
लिहाफ उढ़ा देती हर बार।।


उस दुलार से कभी खीजती,
मान कभी करती थी मैं,
उसी प्यार को अब मन तरसे,
उस रस की अब कहाँ फुहार?


माँ बनकर ही मैंने जाना,
क्या होता है माँ का प्यार।


प्रसव-पीर की पीड़ा सहकर,
जब मैं थककर चूर हुई,
नन्हें शिशु के मुखदर्शन से,
सभी क्लान्ति दूर हुई,


कल तक मैं माँ-माँ कहती थी,
अब मैं भी माँ कहलायी,
मन की गंगोत्री से निकली,
ममता की वह अनुपम धार।


मां बनकर ही मैंने जाना,
क्या होता है माँ का प्यार।


शिशु की सुख-सुविधाओं का,
अब रहता था कितना ध्यान।
त्याग, परिश्रम हुये सहज,
क्षमा हुई कितनी आसान।।


आंचल में दूध नयन में पानी,
बचपन में था पढ़ा कभी,
वे गुण अनायास ही पाये,
मातृरूप हुआ साकार।।


माँ बनकर ही मैंने जाना,
क्या होता है माँ का प्यार।


यद्यपि माँ, इस जग की
सीमाओं से, तुम दूर हुईं।
फिर भी मुझे लगा करता है,
हो सदैव तुम पास यहीं।।


जबतक मैं हूँ, तुम हो मुझमें,
दूर नहीं हम हुये कभी,
माता का नाता ही होता,
सब सम्बन्धों का आधार।।


माँ बनकर ही मैंने जाना,
क्या होता है माँ का प्यार।
जिस माँ ने अनजाने ही
दे दिया मुझे सारा संसार।।




2 comments:

  1. maa ko pranaam

    maa ka gaurav gaane wali lekhni ko bhi pranaam !

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  2. बहुत उम्दा एवं भावपूर्ण.

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