बीते ऐसे दिन बहुतेरे।
बीते दिन बीती रातों में,
सुधियों के बढ़्ते से घेरे।
बीते ऐसे दिन बहुतेरे।।
बचपन के सुन्दर सपनों में
छिपा हुआ सुखमय संसार।
सहजप्राप्य अभिलाषाओं में
भरा हुआ सुख चैन अपार॥
सब थे अपने, सुन्दर सपने,
जागा करते साँझ सवेरे ।
बीते ऐसे दिन बहुतेरे॥
कुछ उजला और कुछ अँधियारा,
सन्ध्या का धूमिल गलियारा।
खोज रही थी मेरी आँखें
दो हाथों का सबल सहारा॥
भावों से भीगे-भीगे से
कुछ पल तेरे, कुछ पल मेरे॥
बीते ऐसे दिन बहुतेरे।
जीवन ने निज वरदहस्त से
मुझपर कितना कुछ बरसाया।
सुख से घिरी रही, पर मन में
यह कैसी उदास सी छाय़ा?
सतरंगों से सजी अल्पना
पर किसने ये रंग बिखेरे?
बीते ऐसे दिन बहुतेरे।
सुख में घिरे पर उदासी की छाया से बच नहीं सके ...कितने सुखी चेहरों की यही कहानी है ...!!
ReplyDeleteयादों को संजोती रचना भाव बहुत हैं खास।
ReplyDeleteआशा जी से बहुत है आशा करते रहें प्रयास।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
आशाजी ,
ReplyDeleteअपने "माज़ी " को चुपचाप पड़ा रहने दो |
गर यह उठ गया तो बिखर जाएगा |
माज़ी = भूतकाल
डॉ. ग़ुलाम मुर्तज़ा शरीफ
अमेरिका