Sunday, November 1, 2009

प्रेमगीत - आशा बर्मन


मत करीब आओ कि डर लगता है।

और पाने की कशिश है, कोशिश फ़िर भी,
खो न दूँ, जो भी पाया है कि डर लगता है।
मत करीब आओ कि डर लगता है।

मृदुल स्मृतियाँ सहलाती मन को,
मधुर कल्पनायें बहलाती मन को,
बिसरी बातों में न बदलें कि डर लगता है।
मत करीब आओ कि डर लगता है।

विश्वास की नैया में हम चलते ही गये,
वह कब प्रेम में बदला,यह समझ ही न सके,
प्यार अब और तो बढ़ सकता नहीं,
कम न हो जाये कि डर लगता है।
मत करीब आओ कि डर लगता है।

इस पार रहें कि हम उस पार रहें,
हां - ना के झूले में कबतक झूलें,
अबतक जिस छोर को पकड़ा मैनें.
वो भी टूटेगा, छूटेगा,कि डर लगता है।
मत करीब आओ कि डर लगता है।

2 comments:

  1. बहुत बढ़िया गीत.

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  2. मत करीब आओ की डर लगता है ...खुबसूरत प्रेम गीत ..!!

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