
उत्साहित हूँ कि अपना नया ब्लाग शुरु कर रही हूँ। आज मेरी एक छोटी सी, प्रिय रचना से शुभारंभ करती हूँ।
खुला आकाश,
दूर-दूर तक फैली धरती,
स्वच्छंद समीरण और
बँधे-बँधे लोग।
भले-बुरे विभिन्न
कार्य कलाप करते हुये
अपने-अपने अहं के
सूत्र से बँधे लोग।
अपने से सशक्त देखा
उनकी परिधियों से
स्वयं को भी बाँधने लगे
जहाँ अपने से अशक्त देखा,
निज से असहमत लोगों को,
अकाट्य तर्कों से निरुत्तर कर,
वाग्वाण से आहत कर
प्रसन्न होने की निष्फल चेष्टा करते
हम सतत व्यस्त रहे।
और हमारा अहंकार,
कठपुतली से नाचते हुये हमें,
देखता रहा बन सूत्रधार।
मुस्करा रहा मंद-मंद
तुष्ट-परिटुष्ट हमारा अहं।
ब्लॉगजगत में स्वागत है आपका.
ReplyDeleteबहुत ही ख़ूबसूरत खिलती हैं आप.
इसी तरह लिखती रहें.
मेरी शुभकामनाएं
बहुत सुन्दर आशादी, आपके भाव यूँ तो कभी भी सँकुचित नहीं थे पर अब ब्लाग के माध्यम से ये विस्तृत हो अपने बहुत से पाठकों को अपनी स्नेहिल संवेदनशीलता से छू सकेंगे, ऐसा मेरा विश्वास है।
ReplyDeleteब्लाग शुरू करने पर बधाई!
Asha Ji, Namaskar!
ReplyDeleteBha'va bahut gahare haim'. aur gahara'iyom' mem' utar
pras'phut'it hom' vishva ko a'nanda dem'.
HWG par naya' sadasya hu'm.
Gopal Baghel ' Madhu'
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